


‘ला नीना' सितंबर में वापस आकर मौसम और जलवायु प्रणाली को प्रभावित कर सकता है। WHO ने ताजा जानकारी देते हुए यह संभावना जताई। रिपोर्ट में कहा गया है कि ला नीना के अस्थायी शीतलन प्रभाव के बावजूद दुनिया के अधिकतर हिस्सों में वैश्विक तापमान अब भी औसत से अधिक रहने की संभावना है। ला नीना और अल नीनो प्रशांत महासागर के जलवायु चक्र के विपरीत चरण हैं। अल नीनो पेरू के निकट समुद्री जल के समय-समय पर गर्म होने को संदर्भित करता है जो भारत के मानसून को अक्सर कमजोर करता है और इसके कारण सर्दियां अपेक्षकृत गर्म रहती है। ला नीना इस जल को ठंडा करता है जिससे भारत का आमतौर पर मानसून मजबूत होता है और सर्दियों में अपेक्षाकृत अधिक ठंड होती है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन का कहना है कि ला नीना और अल नीनो जैसी प्राकृतिक रूप से होने वाली जलवायु घटनाएं मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के व्यापक संदर्भ में घटित हो रही हैं जिससे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, मौसम की चरम परिस्थितियों की तीव्रता बढ़ रही है और मौसमी वर्षा एवं तापमान की प्रणाली में बदलाव आ रहा है।